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फोटोग्राफी में आईएसओ (ISO) या कैमरा ISO क्या है?

कैमरा आईएसओ (ISO)

फोटोग्राफी में आईएसओ (ISO) या कैमरा ISO : एक्सपोजर ट्राएंगल (Exposure Triangle) का तीसरा स्तंभ!

कैमरा आईएसओ (ISO) फोटोग्राफी में ‘एक्सपोजर ट्राएंगल ‘का तीसरा महत्वपूर्ण फैक्टर फ़ोटोग्राफी में इमेज का ब्राइट या डार्क होना एक्सपोजर (exposure) पर निर्भर करता है। इस एक्सपोजर को निर्धारित करने वाले चार कारक होते हैं – (i) लेंस का अपर्चर, (ii) कैमरे की शटर-स्पीड, (iii) कैमरे का ISO और (iv) सब्जेक्ट पर पड़ने वाली लाइट। इनमें से पहले तीन को ‘एक्सपोजर ट्राएंगल’ (Exposure Triangle) कहते हैं। ये तीन फैक्टर्स हैं जिनकी मदद से आप अपनी जरूरत के हिसाब से कैमरे में exposure सेट कर सकते हैं।

Exposure Triangle (एक्सपोजर ट्राएंगल)

(i) Aperture
(ii) Shutter Speed और
(iii) ISO

इन्हें आप फोटोग्राफी के तीन स्तंभ मान सकते हैं। ISO (आईएसओ) Exposure Triangle का तीसरा स्तंभ है। इसे बदलकर आप फ़ोटो का एक्सपोजर बदल सकते हैं, यानी ISO बढ़ा-घटा कर आप फोटो को ब्राइट या डार्क बना सकते हैं। आइए जानें, फोटोग्राफी मेंं आईएसओ (ISO) का क्या महत्व है?

फिल्म रील (जिसे आम भाषा में नेगेटिव कहा जाता था) वाले कैमरे में जो काम फिल्म करती थी वही काम डिजिटल कैमरे में उसका इमेज सेंसर (image sensor) करता है। इमेज सेंसर कैमरे के अंदर उसके सबसे पिछ्ले हिस्से में होता है। लेंस से होकर कैमरे के अंदर आने वाला प्रकाश अंततः image sensor तक पहुंचता है। कैमरा आईएसओ (ISO) उसके sensor की प्रकाश संवेदनशीलता, यानी ‘लाइट सेंसिटिविटी’ है। ISO को 50, 100 … से लेकर कई हजार के number स्केल में व्यक्त किया जाता है। इन्हें ISO number कहते हैं। फ़िल्म वाले कैमरे में ISO फ़ोटो फिल्म का गुण होता है, जबकि डिजिटक कैमरे में इमेज सेंसर का। फिल्म कैमरे में हर ‘फिल्म रील’ का एक निर्धारित ISO होता है। फ़िल्म कैमरे के लिए भी ISO महत्वपूर्ण होता है। लेकिन, डिजिटल कैमरे के आने से फोटोग्राफी में आईएसओ (ISO) का महत्व काफी बढ़ गया है।   

हर डिजिटल कैमरा-सेंसर का मिनिमम और मैक्सिमम ISO number निर्धारित होता है। इसी रेंज के अंदर आप अपनी जरूरत के हिसाब से अपने कैमरे में फोटो के लिए ISO सेट कर सकते हैं। आप जितना ऊंचा ISO सेट करेंगे लाइट के प्रति sensor उतना अधिक सेंसिटिव होगा। परिणामस्वरूप, फोटो का exposure बढ़ेगा और वह अधिक ब्राइट होगी। डिजिटल कैमरे के सेंसर की अधिकतम ISO number भी उसकी एक बड़ी विशेषता होती है। यह कम रोशनी में उसके फोटो लेने की क्षमता तय करती है और अंततः फिर इससे कैमरे की कीमत तय होती है। मैनुअल मोड वाले कैमरे के यूजर मैनुअल में ISO सेट करने का तरीका दिया होता है, जो हर कैमरे के लिए अलग-अलग होता है।

फोटोग्राफी मेंं कैमरा आईएसओ (ISO) की क्या भूमिका है?

ISO का exposure पर प्रभाव

आपकी क्लिक की गई फ़ोटो फाइनली कितनी ब्राइट या डार्क होगी यह केवल अपर्चर (Aperture ) और शटर स्पीड (Shutter Speed ) के कारण इमेज सेंसर को मिलने वाली लाइट पर निर्भर नहीं करता। अपर्चर और शटर स्पीड से जितनी एक्चुअल लाइट सेंसर को मिलती है, उसके प्रति इमेज सेंसर कितना सेंसिटिव है- फाइनली इससे तय होता है कि हमारी फ़ोटो कितनी ब्राइट या डार्क होगी। जैसा हमने ऊपर देखा, प्रकाश के प्रति सेंसर की सेंसिटिविटी की माप है ISO, जिसे बढ़ा या घटा कर फ़ोटो के ब्राइटनेस को कम या अधिक किया जा सकता है। इसीलिए इसे एक्सपोजर निर्धारित करने वाला तीसरा स्तंभ मानते हैं।

डीएसएलआर, मिररलेस और एडवांस्ड प्वाइंट & शूट कैमरों में ISO को 50,100, 200, 400, 800….3200, 6400… की संख्या के रूप में सेट करने की सुविधा होती है। ISO नंबर जितना बढ़ाएंगे सेंसर की सेंसेटिविटी उतनी बढ़ेगी और उसी ratio में एक्सपोजर बढ़ेगा। इसी तरह, ISO घटाने पर इसका उलटा होता है, यानी एक्सपोजर घटता है।

अपर्चर और शटर स्पीड की बजाए ISO की मदद से एक्सपोजर सेट करना

अपनी जरूरत का एक्सपोजर पाने के लिए अपर्चर और शटर स्पीड बदलने के कुछ ‘साइड इफेक्ट्स’ भी होते हैं। अपर्चर वैल्यू बदलने से फ़ोटो का Depth of Field भी बदलता है। इसी तरह, शटर स्पीड बदलने से एक्सपोजर के साथ-साथ तस्वीर में motion effect भी बदल जाता है। इसलिए, हर सिचुएशन में एक्सपोजर बदलने के लिए Aperture और Shutter Speed का सहारा नहीं लिया जा सकता। उदाहरण के लिए, उड़ते हुए बाज की शार्प तस्वीर लेने के लिए आपको अपर्चर वैल्यू f8 या f10 रखना पड़ सकता है और साथ ही मोशन ब्लर (motion blur) न हो इसके लिए फास्ट शटर स्पीड, जैसे कि 1/1000 से 1/2000 सेकेंड, सेट करना पड़ता है। जाहिर है, नॉर्मली ऐसे में आपकी फ़ोटो डार्क होगी। इन्हीं मूविंग सब्जेक्ट्स की Photography मेंं आईएसओ (ISO) हमारे काम आता है। ISO नंबर को 800 या 1000 तक बढ़ाकर हम उड़ते बाज की ब्राइट और शार्प तस्वीर ले सकते हैं।

ऊंचा आईएसओ (Higher ISO) का साइड इफेक्ट : तस्वीर में Noise (or Grain)

ISO बढ़ाने से कैमरे का एक्चुअल लाइट इनपुट तो नहीं बढ़ता, लेकिन इमेज सेंसर को अपनी सेंसिटिविटी बढ़ानी पड़ जाती है। इसमें होता यह है कि सेंसर को बैट्री से अधिक पावर लेना पड़ता है, और इस वजह से इमेज सेंसर के पिक्सल गर्म हो जाते हैं। इसी कारण, तस्वीर में Noise या Grain दिखाई पड़ते हैं। स्वाभाविक है, साफ-सुथरी प्लेन तस्वीरों की तुलना में नॉइज या ग्रेन वाली तस्वीरें कम आकर्षक होती हैं और उनमें डिटेल्स भी कम कैप्चर होते हैं। लेकिन, मॉडर्न डीएसएलआर कैमरों के इमेज सेंसर की तकनीक अब इतनी उन्नत हो चुकी है कि ISO 2000-3200 रखकर भी आप काम लायक तस्वीर पा सकते हैं। फिर भी, ध्यान रखें कि कैमरा आइएसओ (ISO) तभी बढ़ाना चाहिए जब इसके अलावा कोई चारा न हो।

कैमरे का एक बेस ISO होता है जो आम तौर पर 100 या 200 होता है। महंगे नए डीएसएलआर मॉडलों में बेस ISO 50 तक भी होता है। कैमरे के बेस ISO पर बिना Noise या Grain वाली सबसे सुंदर डीटेल्स वाली तस्वीर बनती है। सिद्धांततः, ज्यों-ज्यों ISO बढ़ाएंगे तस्वीर में ग्रेन बढ़ेंगे और डीटेल्स कम होंगे, लेकिन आधुनिक डीएसएलआर कैमरों में ISO 800-1000 तक प्रक्टिकली ग्रेन-फी तस्वीरें पाई जा सकती हैं।

Exposure Triangle के 2 अन्य factors-

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